वांछित मन्त्र चुनें
देवता: मरूतः ऋषि: कण्वो घौरः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

अच्छा॑ वदा॒ तना॑ गि॒रा ज॒रायै॒ ब्रह्म॑ण॒स्पति॑म् । अ॒ग्निं मि॒त्रं न द॑र्श॒तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

acchā vadā tanā girā jarāyai brahmaṇas patim | agnim mitraṁ na darśatam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अच्छ॑ । व॒द॒ । तना॑ । गि॒रा । ज॒रायै॑ । ब्रह्म॑णः । पति॑म् । अ॒ग्निम् । मि॒त्रम् । न । द॒र्श॒तम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:38» मन्त्र:13 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:17» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:13


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर इस विमानादि विद्या का उपदेशक विद्वान् कैसा होवे, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सब विद्या के जाननेवाले विद्वान् ! तू (न) जैसे (ब्रह्मणः) वेद के पढ़ाने और उपदेश से (पतिम्) पालने हारे (दर्शतम्) देखने योग्य (अग्निम्) तेजस्वी (मित्रम्) जैसे मित्र को मित्र उपदेश करता है वैसे (जरायै) गुण ज्ञान के लिये (तना) गुणों के प्रकाश को बढ़ाने हारी (गिरा) अपनी वेदयुक्त वाणी से विमानादि यानविद्या का (अच्छा वद) अच्छे प्रकार उपदेश कर ॥१३॥
भावार्थभाषाः - इस मंत्र में उपमालङ्कार है। हे विद्वान् मनुष्यों ! तुम लोगों को चाहिये कि जैसे प्रिय मित्र अपने प्रिय तेजस्वी वेदोपदेशक मित्र को सेवा और गुणों की स्तुति से तृप्त करता है वैसे सब विद्याओं का विस्तार करनेवाली वेद वाणी से विमानादि यानों के रचने की विद्या का उसके गुण ज्ञान के लिये निरंतर उपदेश करो ॥१३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

(अच्छ) सम्यग्रीत्या। अत्र दीर्घः। (वद) उपदिश। अत्र द्वचोतस्तिङ् इति दीर्घः। (तना) गुणप्रकाशं विस्तारयन्त्या (गिरा) स्वकीयया वेदयुक्त्या वाण्या (जरायै) स्तुत्यै। जरास्तुतिजरतेः स्तुतिकर्मणः। निरु० १०।८। (ब्रह्मणः) वेदस्याऽध्यापनोपदेशेन (पतिम्) पालकम् (अग्निम्) ब्रह्मवर्चस्विनम् (मित्रम्) सुहृदम् (न) इव (दर्शतम्) द्रष्टव्यम् ॥१३॥

अन्वय:

तदेतदुपदेशको विद्वान् कीदृशो भवेदित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सर्वविद्याविद्विद्वँस्त्वंब्रह्मणस्पतिं दर्शतमग्निंमित्रं न जरायै तना गिरा विमानादियानविद्यामच्छावद ॥१३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो मनुष्या यथा प्रियः सखा प्रीतं तेजस्विनं वेदोपदेशकं सुहृदं सेवागुणस्तुतिभ्यां प्रीणाति तथा सर्वविद्याविस्तारिकया वेदवाण्या विमानादियानरचनविद्यां तद्गुणज्ञानया सम्यगुपदिशत ॥१३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे विद्वान माणसांनो ! जसा प्रिय मित्र आपल्या प्रिय तेजस्वी वेदोपदेशक मित्रांची सेवा करून त्याची स्तुती करून त्याला तृप्त करतो तसे सर्व विद्यांचा विस्तार करणाऱ्या वेदवाणीने विमान इत्यादी याने निर्माण करण्याच्या विद्येचा तिच्या गुणांसह निरंतर उपदेश करा. ॥ १३ ॥